कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की क़दम न थे ज़मीं पे जब वो उम्र थी कमाल की कई दिनों से फ़िक्र का उफ़ुक़ उदास उदास है न जाने खो गई कहाँ धनक तिरे ख़याल की रफ़ाक़तों के वो निशाँ न जाने खो गए कहाँ वो ख़ुशबुओं की रहगुज़र वो रतजगों की पालकी किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया न इंतिहा ख़ुशी की है न इंतिहा मलाल की वो रौशनी का ख़्वाब था मगर वही सराब था उरूज में छुपी हुई थी इब्तिदा ज़वाल की