कभी ख़िरद का कभी इश्क़ का बहाना था मिरी हयात का मक़्सद फ़रेब खाना था तिरी निगाह को गहराइयों में जाना था मिरे सुकूत की हर तह में इक फ़साना था चमन के एक ही गोशे में है हुजूम-ए-बहार ये वो जगह है जहाँ मेरा आशियाना था ख़िज़ाँ का ख़ौफ़ था ग़ुंचों को फ़स्ल-ए-गुल में मगर वो मुस्कुरा के रहे जिन को मुस्कुराना था जहाँ हुआ था उन्हें पा-शिकस्तगी का गुमाँ मुसाफ़िरों को वहीं से क़दम बढ़ाना था शब-ए-फ़िराक़ के मारे हुए न देख सके तुलू-ए-सुब्ह का मंज़र बहुत सुहाना था वो बे-ख़बर हैं मोहब्बत से जो ये कहते हैं किसी की याद में दुनिया को भूल जाना था जहाँ-जहाँ मैं रुका वक़्त के क़दम भी रुके मिरा वजूद ख़ुद अपनी जगह ज़माना था हुज़ूर-ए-हुस्न मजाल-ए-नज़र न थी 'शाहिद' हमें ख़ुद अपने मुक़द्दर को आज़माना था