जो फ़र्ज़ आएद हुआ है हम पर उसे ख़ुशी से अदा करेंगे हमारा शेवा यही रहा है जफ़ा के बदले वफ़ा करेंगे शिकस्ता कश्ती मुहीब तूफ़ान और साहिल नज़र से ओझल अज़ाब कितने ही आएँ हम पे न मिन्नत-ए-नाख़ुदा करेंगे रसाई कैसे वफ़ा की मंज़िल पे होगी ये राज़ हम से पूछो जहाँ सफ़र ख़त्म सब का होगा वहीं से हम इब्तिदा करेंगे ख़ुशी के झूले हैं झूलने वाले क्या समझ पाएँ ज़िंदगी को ये राज़ उन पर खुलेगा जिस दम वो दिल को ग़म-आश्ना करेंगे शजर है बे-बर्ग कलियाँ रौंदी हुई गुल-ओ-लाला हैं फ़सुर्दा यही है मंज़र बहार का तो चमन में हम जा के क्या करेंगे रहे हैं ज़ात-ए-ख़ुदा से मुनकिर गुनाह तस्लीम है मगर अब हयात की सरज़निश से डर कर बुलंद दस्त-ए-दुआ' करेंगे अज़ल से दस्तूर है ये क़ाएम न इस में तरमीम हो सकेगी चराग़-हा-ए-हयात 'गौहर' जला करेंगे बुझा करेंगे