कभी ख़ुद को दर्द-शनास करो कभी आओ ना मुझे इतना तो न उदास करो कभी आओ ना मिरी उम्र-सराए महके है गुल-ए-हिज्राँ से कभी आओ आ कर बास करो कभी आओ ना मुझे चाँद में शक्ल दिखाई दे जो दुहाई दे कोई चारा-ए-होश-ओ-हवास करो कभी आओ ना इसी गोशा-ए-याद में बैठा हूँ कई बरसों से किसी रफ़्त-गुज़श्त का पास करो कभी आओ ना कहीं आब-ओ-हवा-ए-तिश्ना-लबी मुझे मार न दे उसे बरखा बन कर रास करो कभी आओ ना सदा आते जाते मौसम की ये गुलाब-रुतें कोई देर हैं ये एहसास करो कभी आओ ना