ज़ेहन से दिल का बार उतरा है पैरहन तार तार उतरा है डूब जाने की लज़्ज़तें मत पूछ कौन ऐसे में पार उतरा है तर्क-ए-मय कर के भी बहुत पछताए मुद्दतों में ख़ुमार उतरा है देख कर मेरा दश्त-ए-तन्हाई रंग-ए-रू-ए-बहार उतरा है पिछली शब चाँद मेरे साग़र में पय-ब-पय बार बार उतरा है