कभी खुला ही नहीं कितनों पर कि क्या है सफ़र क़दम-क़दम पे तिरे जैसे आइना है सफ़र चलो बताता हूँ अल-मुख़्तसर कि क्या है सफ़र जहाँ से आए हो उस सम्त लौटना है सफ़र कहीं पे जंगें लड़ीं तो कहीं पड़ाओ किया हम ऐसे ख़ाना-ब-दोशों का आसरा है सफ़र थकन सफ़र की मिरा हौसला बढ़ाती है न हों स'ऊबतें रह में तो बे-मज़ा है सफ़र कहीं तो होगी ही मंज़िल मैं ढूँड लूँगा उसे हुज़ूर मेरा पसंदीदा मश्ग़ला है सफ़र किसी किसी पे सफ़र ता-हयात बे-मा'नी किसी किसी के लिए ज़िंदगी-नुमा है सफ़र 'अजीब दुख है हम उजड़े हुए क़बीलों का हमारे वास्ते संगीन मसअला है सफ़र