कभी नशेब में था और कभी फ़राज़ में था ये आबशार-ए-मोहब्बत दिलों के राज़ में था मिरे ख़िलाफ़ ही साज़िश वो कर रहे थे मगर अजीब बात है शामिल मैं साज़-बाज़ में था तुम्हें ख़बर ही नहीं उस के हबशियो कि कभी मिरी सदा का फ़ुसूँ भी हर एक जाज़ में था तमाम उम्र मैं बे-घर रहा ख़बर न हुई कि मेरा घर उसी चश्म-ए-फुसूँ-तराज़ में था मैं अब न क़ैद लकीरों में हूँ न रंगों में हज़ार पहले मुक़य्यद मैं दाम-ए-आज़ में था ज़मीं पे गिर के यकायक जो पाश पाश हुआ तुम्हें ख़बर ही नहीं मैं उसी जहाज़ में था