कभी तरतीब देता है कभी मिस्मार करता है वो अपनी बेबसी का इस तरह इज़हार करता है गुमान-ओ-बे-यक़ीनी कब किसे तकमील करते हैं जिसे उम्मीद होती है वही इसरार करता है किसी इक फ़ैसले के मुंतज़िर हैं लोग मुद्दत से उसे काफ़िर कहेंगे सब अगर इंकार करता है पड़ाव कर चुका है कारवाँ ऐसे इलाक़े में जहाँ न ठहरने पे कुल जहाँ इसरार करता है कभी तो रास्ते ख़ुद मंज़िलों से दूर करते हैं कहीं पर ख़ुद जुनूँ भी रास्ता हमवार करता है मुझे मेरे इरादे टूटने से रोकते हैं 'नाज़' मगर हालात कहते हैं सफ़र बे-कार करता है