कभी तो देख ले इक बार मुस्कुरा के मुझे तुझे भी दर्द तो होगा कहीं रुला के मुझे जो चल दिए वो कभी लौट कर नहीं आते पयाम आए हैं जाती हुई सबा के मुझे मैं सब को छोड़ के बाहों में तेरी जी लूँगा कभी पुकार ले सब रंजिशें भुला के मुझे तमाम उम्र बसाया उसी को आँखों में जो खो गया था कभी इक झलक दिखा के मुझे मैं ख़ुद को लाख लिबादों में ढाँप लूँ लेकिन मिरे ज़मीर ने देखा है बिन क़बा के मुझे वो जिस से नाम मिरा छुप के तू ने लिखा था अभी भी याद हैं सब रंग उस हिना के मुझे मैं एक गीत हूँ मेरा यही मुक़द्दर है तू भूल जाएगा कुछ देर गुनगुना के मुझे