कभी तो हक़ की कोई बात बरमला कहिए बुरा बुरे को भले को सदा भला कहिए हवा का देखिए रुख़ कौन कितना बदला है क़ुसूर किस का है मेरा कि आप का कहिए बयाँ का फ़र्क़ है वर्ना वही है कैफ़िय्यत बुझा बुझा न सही दिल जला जला कहिए तुम्हारे बा'द न की कोई आरज़ू मैं ने अगर हो देखा कभी दिल का दर खुला कहिए कोई कमी सी जो हर मोड़ पर हुई महसूस जिसे न पुर कोई कर पाया वो ख़ला कहिए हयात-ओ-मौत के असरार कौन समझा है उसे अज़ल से अबद तक का सिलसिला कहिए है ला-इलाज ये आज़ाद इश्क़ ऐ 'फ़र्ज़ी' इलाज इस का किसी से भी कब हुआ कहिए