दोस्ती के नए आदाब लिए फिरते हैं लोग अब इत्र में तेज़ाब लिए फिरते हैं चाहते हैं कि हक़ीक़त में ढलें आप ही आप जागती आँखों में हम ख़्वाब लिए फिरते हैं आँख उठती नहीं बाहर के नज़ारों की तरफ़ हम तबीअत बड़ी सैराब लिए फिरते हैं एहतियातन कि हरीफ़ों के न हाथ आ जाएँ मेरे पुर्ज़े मिरे अहबाब लिए फिरते हैं हम को शोहरत की तमन्ना न सताइश की तलब बे-सबब आप ये अस्बाब लिए फिरते हैं मह-जबीं हैं उन्हें बिंदिया की ज़रूरत क्या है क्यों वो महताब पे महताब लिए फिरते हैं क्या गुज़रती है दिलों पर ये ख़ुदा ही जाने लोग चेहरे बड़े शादाब लिए फिरते हैं दिल के तारों से चले छेड़ तरन्नुम के लिए हम जो अशआ'र की मिज़राब लिए फिरते हैं बादबाँ का है न पतवार का मुहताज 'नक़ीब' उस की कश्ती को जो गिर्दाब लिए फिरते हैं