कभी वो दोस्त कभी फ़ित्ना-साज़ लगता है वो देखने में बड़ा दिल-नवाज़ लगता है ग़ज़ब में आए तो आतिश मिज़ाज बन जाए वो मेहरबाँ हो तो महफ़िल-गुदाज़ लगता है जहाँ का दर्द भरा है मिज़ाज में उस के वो एक हम से फ़क़त बे-नियाज़ लगता है वो तोड़ता भी है दिल इक अदा-ए-नाज़ के साथ सितमगरी में भी वो चारासाज़ लगता है जफ़ाएँ उस की वो मक़्बूल-ए-आम हैं इतनी हमारा शिकवा बहुत बे-जवाज़ लगता है मैं सर-ब-सज्दा हुआ उस के दर पे तो पूछा ये कौन शख़्स है महव-ए-नमाज़ लगता है मिरी फ़ुग़ाँ पे ब-अंदाज़-ए-दाद उस ने कहा तुम्हारा शे'र बहुत दिल-गुदाज़ लगता है