क़द बढ़ाने के लिए बौनों की बस्ती में चलो ये नहीं मुमकिन तो फिर बच्चों की बस्ती में चलो सब्र की चादर को ओढ़े ख़्वाब-गाहों में रहो सच की दुनिया छोड़ कर वादों की बस्ती में चलो जब भी तन्हाई के हंगामों से दम घुटने लगे भीड़ में गुम हो के अन-जानों की बस्ती में चलो डाल रक्खी है ख़िरद-मंदों ने चेहरों पर नक़ाब इस लिए कहता हूँ दीवानों की बस्ती में चलो उँगलियों की ज़र्ब से साज़-ए-सुकूँ को तोड़ कर जब जुनूँ हद से बढ़े, रिश्तों की बस्ती में चलो इक तुम्हारी ये क़यादत मो'तबर रह जाएगी हाथ में पत्थर लिए शीशों की बस्ती में चलो भीड़ से 'आज़म' यहाँ मिलना-मिलाना छोड़ कर मर्तबा के वास्ते पर्दों की बस्ती में चलो