क़ब्ज़ा मिरे बदन पे मिरी ख़्वाहिशों का है बस्ती मिरी पे राज मिरे दुश्मनों का है क़ल्ब-ओ-नज़र में नूर नए तजरबों का है एहसान किस क़दर ये बदलती रुतों का है चेहरे से धुल चुकी मिरी बेदारियों की राख आँखों में कुछ ख़ुमार अभी रतजगों का है तू सो रहा था और मैं दस्तक न दे सका कितना ख़याल मुझ को तिरी राहतों का है शायद वो आज मेरी तरह ही था बे-क़रार या ये भी कोई अक्स मिरी उलझनों का है चलती है जिस तरह से तिरी नब्ज़ तेज़ तेज़ अंदाज़ हू-ब-हू ये मिरी धड़कनों का है जिन के तुफ़ैल सब्ज़ है कोहसार का बदन सैलाब वादियों में उन्हें बारिशों का है दीवानगी में मेरी नहीं है किसी का हाथ सारा क़ुसूर उस में मिरी आदतों का है दिल मुज़्तरिब है और सियाहत है बे-मज़ा जादू अभी हमारे सरों पर घरों का है क्या जानें किस तरह से उसे तय करेंगे हम दरपेश इक सफ़र जो घने जंगलों का है 'बेताब' अपने हाल पे मातम न क्यूँ करूँ मुझ को अभी तो रंज लुटी साअ'तों का है