क़द ओ गेसू लब-ओ-रुख़्सार के अफ़्साने चले आज महफ़िल में तिरे नाम पे पैमाने चले अभी तू ने दिल-ए-शोरीदा को देखा क्या है मौज में आए तो तूफ़ानों से टकराने चले देखें अब रहता है किस किस का गरेबाँ साबित चाक-ए-दिल ले के तिरी बज़्म से दीवाने चले फिर किसी जश्न-ए-चराग़ाँ का गुमाँ है शायद आज हर सम्त से पुर-सोख़्ता परवाने चले ये मसीहाई भी इक तुर्फ़ा-तमाशा है कि जब दम उलट जाए तो वो ज़ख़्मों को सहलाने चले जिस ने उलझाया है कितने ही दिलों को यारो हम भी उस ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर को सुलझाने चले