ना-शगुफ़्ता कलियों में शौक़ है तबस्सुम का बार सह नहीं सकतीं देर तक तलातुम का जाने कितनी फ़रियादें ढल रही हैं नग़्मों में छिड़ रही है दुख की बात नाम है तरन्नुम का कितने बे-कराँ दरिया पार कर लिए हम ने मौज मौज में जिन की ज़ोर था तलातुम का ऐ ख़याल की कलियो और मुस्कुरा लेतीं कुछ अभी तो आया था रंग सा तबस्सुम का गुफ़्तुगू किसी से हो तेरा ध्यान रहता है टूट टूट जाता है सिलसिला तकल्लुम का हसरत ओ मोहब्बत से देखते रहो 'जावेद' हाथ आ नहीं सकता हुस्न माह-ओ-अंजुम का