क़दम शबाब में अक्सर बहकने लगता है By Ghazal << रात का नाम सवेरा ही सही मुद्दत की तिश्नगी का इनआ&... >> क़दम शबाब में अक्सर बहकने लगता है भरा हो जाम तू अज़-ख़ुद छलकने लगता है कोई चराग़ अँधेरों में जब नहीं जलता किसी की याद का जुगनू चमकने लगता है शब-ए-फ़िराक़ मुझे नींद जब नहीं आती ये किस का हाथ मिरा सर थपकने लगता है Share on: