क़द-आवर लोगों का क़द ही नापा जाता है इस दुनिया में सोने को ही परखा जाता है तुम बाज़ार में आ तो गए हो लेकिन ध्यान रहे शाम से पहले बाज़ारों से लौटा जाता है कैसे कैसे चेहरों से रंग उड़ने लगते हैं जब भी हम दोनों को साथ में देखा जाता है अपनी हक़ीक़त जानने वाला ज़िंदा रहता है और इस से मुँह मोड़ने वाला मरता जाता है प्यास नहीं एहसास की क़ीमत सामने आती है जब जब भी दरिया को समुंदर समझा जाता है