क़दमों के अपने ज़ोर दिखाते हुए चलो जब भी चलो तो पाँव बजाते हुए चलो हर छूटते मक़ाम को तेरी कमी खले हर दिल में इक मक़ाम बनाते हुए चलो दुनिया चली है रात से फिर सुब्ह की तरफ़ ज़ुल्फ़-ए-सियाह-रंग लुटाते हुए चलो तेरे बिना तो बे-कसी भी बे-कसी नहीं मुमकिन हो गरचे याद में आते हुए चलो गो इश्क़ है तो इश्क़ में पैवस्त क्यों रहें राह-ए-फ़ना में नाचते गाते हुए चलो