क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया मंज़िल पे रास्ते की ख़बर कौन ले गया रू-ए-उफ़ुक़ से नूर-ए-सहर कौन ले गया इस औज तक कमंद-ए-नज़र कौन ले गया रख दी गई थी क़दमों पे उस के उतार कर दस्तार जानती है कि सर कौन ले गया इस सत्ह पर किसे था मिरी ज़ात का शुऊर इतनी तहों में आ के गुहर कौन ले गया सूखे दरख़्त नेज़ों की सूरत गड़े हुए वो बर्ग ओ गुल वो शाख़ ओ समर कौन ले गया