क़द्र की रात बड़ी प्यारी है दिन इसी रैन का दरबारी है मिरी आवाज़ पे मुर्की मुर्की लहन-ए-दाऊद की सरदारी है रंग लाएगी ये इक दिन आख़िर मिरी फ़रियाद भी पिचकारी है उस बबर-मर्द की अल्लाह रे क़ज़ा जिस पे अल्लाह ने रज़ा वारी है तूर बिजली की जवाँ-साल कड़क नूर की रेशमीं किलकारी है दाग़ कहते हैं जिसे कमले कवी वो तो ईमान की चिंगारी है