मेरे मरने की भी उन को न ख़बर दी जाए किस लिए अपनों को तकलीफ़-ए-सफ़र दी जाए लाख को ले के चलें ग़ैर बड़ी शान के साथ घर से ले जा के ये चौराहे पे धर दी जाए उम्र भर तू ने अता की है मय-ए-होश-रुबा वक़्त-ए-आख़िर है मय-ए-होश-असर दी जाए सीम-ओ-ज़र से न सही सब्र-ओ-क़नाअत से सही मुझ से ख़ुद्दार की झोली भी तो भर दी जाए ग़म से ग़म हो न ख़ुशी से हो ख़ुशी का एहसास ऐसी तदबीर भी ऐ दिल कोई कर दी जाए तब कहीं जा के मिले मंज़िल-ए-इरफ़ाँ का निशाँ जब निगाहों को ज़बाँ दिल को नज़र दी जाए दिल कि है कुश्ता-ए-बेदाद-ए-फ़लक ऐ 'साहिर' इस को ताबानी-ए-ख़ुर्शीद-ओ-क़मर दी जाए