क़ाफ़िले गए फिर भी कुछ ग़ुबार बाक़ी है दीद का तिरी अब तक इंतिज़ार बाक़ी है दिल को टूटना ही था टूट के वो बिखरा भी हाँ मगर अभी तक कुछ यादगार बाक़ी है डूबती रही कश्ती सागरों की लहरों में साहिलों पे तुम होंगे ए'तिबार बाक़ी है चाँद ख़ुद मुसाफ़िर है साथ कब तलक देगा रहबरों का अब भी क्यूँ इंतिज़ार बाक़ी है फूल बिखरे राहों में है हसीं सफ़र लेकिन रास्ते में अब भी कुछ ख़ार-ज़ार बाक़ी है ख़त्म हो ही जाएगी तीरगी ग़मों की अब सुब्ह होने वाली है इंतिज़ार बाक़ी है ज़िंदगी जो जीना है उस के वास्ते ऐ 'शाद' ढेर सारी ख़ुशियों का आबशार बाक़ी है