बढ़ने लगी है भीड़ में तन्हाई आज-कल शायद हुई है ख़ुद से शनासाई आज-कल रंज-ओ-अलम की आँच में रिश्ते भसम हुए अब चल रही है दर्द की पुरवाई आज-कल हम से बिछड़ के जब से वो परदेस जा बसा सूनी पड़ी है मन की ये अँगनाई आज-कल जिद्दत ने कुछ तो फूँका है पढ़ कर दयार में डरने लगी है झूट से सच्चाई आज-कल ऐ दिल मैं तेरी बात पे कैसे अमल करूँ माहौल डस रहा है करोनाई आज-कल रुख़ पर नक़ाब ओढ़ के फिरने लगे सभी लगती है हर नज़र भी तो कतराई आज-कल मौसम के भी मिज़ाज का बदला है रंग तो हर फूल हर कली भी है गदराई आज-कल गुज़रा है 'शाज़' दिल से मोहब्बत का क़ाफ़िला लगने लगी है जीत ये पस्पाई आज-कल