कह भी दूँ हाल-ए-दिल अगर शायद

कह भी दूँ हाल-ए-दिल अगर शायद
उन पे हो जाए कुछ असर शायद

अब ज़माना है बेवफ़ाई का
सीख लें हम भी ये हुनर शायद

बा'द मुद्दत के ये ख़याल आया
रास आया नहीं सफ़र शायद

हम ही अब तक समझ नहीं पाए
कुछ तो कहती है वो नज़र शायद

वैसे तो फ़ासला नहीं कोई
कश्मकश है अगर मगर शायद

हर नज़ारे में उस का ही जल्वा
तुम को आता नहीं नज़र शायद

अजनबी अजनबी से चेहरे हैं
ये नहीं है मिरा नगर शायद

नींद तारी है आसमानों पर
या दुआ में नहीं असर शायद

अब कोई आरज़ू नहीं बाक़ी
ख़त्म होता है ये सफ़र शायद

मौज-दर-मौज एक नश्शा था
अब वो दरिया गया उतर शायद

ज़िंदगी अब तुझे सँवारे क्या
कोशिशें सारी बे-असर शायद

इक जहाँ अजनबी रहा 'मीता'
इक जहाँ मुझ से बा-ख़बर शायद


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