कह दिया यूँ ही बेवफ़ा मुझ को बात आख़िर है क्या बता मुझ को रौनक़ें गुम हैं मेरे चेहरे की रोज़ कहता है आइना मुझ को टूट कर शाख़ से बिखरना है गर्म लगती है अब हवा मुझ को चार दिन में ही थक गए थे क़दम फिर मिला ग़म का आसरा मुझ को दिल जो हारा तो फिर बचेगा क्या ज़िंदगी अब न आज़मा मुझ को ढंग का कुछ न वो बना पाया उम्र भर चाक पर रखा मुझ को हाथ में क़ैद है 'सुमन' क़िस्मत रूठने तक गुमाँ रहा मुझ को