कहा है किस ने जहाँ में ख़ुदा नहीं मिलता ख़ुलूस शर्त है ढूँडो तो क्या नहीं मिलता हर एक जिस्म की तख़्लीक़ एक जैसी है हर एक चेहरे से क्यों दूसरा नहीं मिलता कुछ ऐसे मोड़ भी आए वफ़ा की राहों में जहाँ से आगे ख़ुद अपना पता नहीं मिलता हर इक जफ़ा है तुम्हारी हर इक जफ़ा से अलग तुम्हारे जैसा कोई बा-वफ़ा नहीं मिलता मैं फिर रहा हूँ जबीं में समेट कर सज्दे मगर कहीं भी तिरा नक़्श-ए-पा नहीं मिलता वही है गाँव वही मैं वही है पगडंडी बस इक कमी है तिरा नक़्श-ए-पा नहीं मिलता वफ़ा का शौक़ मुबारक वफ़ा करो लेकिन रहे ख़याल वफ़ा का सिला नहीं मिलता तुम्हारा अक्स है महफ़ूज़ जिस में सदियों से न जाने क्यों वही इक आइना नहीं मिलता हम आ के गाँव से पछताए शहर में 'राही' यहाँ किसी का भी असली पता नहीं मिलता