कुछ न पूछो क्यूँ हुआ क्या क्या हुआ जो हुआ हक़ में मिरे अच्छा हुआ वो ज़माने में बहुत रुस्वा हुआ जो भी उन के हुस्न का शैदा हुआ मुजरिम-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा हैं और भी क्यों मिरे ही नाम का चर्चा हुआ उस की नज़रों में है नर्माहट बहुत वो अगर पत्थर हुआ तो क्या हुआ बे-इरादा ही तो उट्ठी थी नज़र क्यों इसी का बज़्म में चर्चा हुआ सिमटा सिमटा जिस क़दर महफ़िल में था उस क़दर बिखरा हूँ जब तन्हा हुआ नाम वाला था बहुत 'राही' मगर नाम ले कर आप का रुस्वा हुआ