कहाँ हटता है निगाहों से हटाए हाए वही मंज़र कि जिसे देख न पाए हाए क्या पता सारी तमन्नाएँ धुआँ हो गई हों कुछ निकलता ही नहीं दिल से सिवाए हाए याद आती हुई इक शक्ल पे अल्लाह अल्लाह दिल में उठती हुई हर टीस पे हाए हाए उस गली जा के भी सज्दा न तुम्हें याद रहा सिर्फ़ नज़रें ही झुकाए चले आए हाए सारी मुश्किल ही निहाँ है मिरी आसानी में कौन ये ख़स्ता सी दीवार गिराए हाए रोज़ इक ताज़ा चिलम भर के मुझे दे फ़रहाद और फिर क़ैस मिरे पाँव दबाए हाए दिल के बेकार धड़कने पे कहाँ ख़ुश थे मियाँ हम तो फूले न समाए ब-सदा-ए-हाए जब वो जाए तो मुझे कुछ भी न भाए 'जव्वाद' और जब आए तो कुछ आए न जाए हाए