सहर से रात की सरगोशियाँ बहार की बात जहाँ में आम हुई चश्म-ए-इन्तिज़ार की बात दिलों की तिश्नगी जितनी दिलों का ग़म जितना उसी क़दर है ज़माने में हुस्न-ए-यार की बात जहाँ भी बैठे हैं जिस जा भी रात मय पी है उन्ही की आँखों के क़िस्से उन्ही के प्यार की बात चमन की आँख भर आई कली का दिल धड़का लबों पे आई है जब भी किसी क़रार की बात ये ज़र्द ज़र्द उजाले ये रात रात का दर्द यही तो रह गई अब जान-ए-बे-क़रार की बात तमाम उम्र चली है तमाम उम्र चले इलाही ख़त्म न हो यार-ए-ग़म-गुसार की बात