कहा किस ने कि ये बंजर रही है ज़मीं दिल की हमेशा तर रही है मिरे हाथों में अपना हाथ रख दे मिरे अंदर कोई शय मर रही है मैं भागा जा रहा हूँ बे-तहाशा तिरी आवाज़ पीछा कर रही है अंधेरे की शिकायत क्या करूँ मैं मिरी शब कब मह-ओ-अख़्तर रही है कोई होता तो कोई बात भी थी मिरी परछाईं मुझ से डर रही है