ज़ौ-फ़िशानी का हवाला नहीं होने वाला शब में जुगनू से उजाला नहीं होने वाला लाख बरसात के पानी से न क्यों भर जाए रश्क-ए-दरिया कोई नाला नहीं होने वाला इक जगह जम्अ नहीं होंगे अगर सारे चराग़ इस अंधेरे में उजाला नहीं होने वाला जो भी कहना था ग़ज़ल में मिरी वाज़ेह है वो मेरा हर शे'र मक़ाला नहीं होने वाला ये मोहब्बत है तिरी मुझ को झुका देती है सर-निगूँ वर्ना हिमाला नहीं होने वाला किसी हिकमत किसी तदबीर का दामन थामो ज़ेर यूँ सामने वाला नहीं होने वाला इंकिसारी मिरी फ़ितरत से जुड़ी है 'मेराज' कि अलग चाँद से हाला नहीं होने वाला