कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी कहा मख़्लूक़ बोले बाइस-ए-आज़ार तो होगी कहा: हम क्या करें इस अहद-ए-ना-पुरसाँ में कुछ कहिए वो बोले कोई आख़िर सूरत-ए-इज़हार तो होगी कहा: हम अपनी मर्ज़ी से सफ़र भी कर नहीं सकते वो बोले हर क़दम पर इक नई दीवार तो होगी कहा: आँखें नहीं इस ग़म में बीनाई भी जाती है वो बोले हिज्र की शब है ज़रा दुश्वार तो होगी कहा: जलता है दिल बोले इसे जलने दिया जाए अँधेरे में किसी को रौशनी दरकार तो होगी कहा: ये कूचा-गर्दी और कितनी देर तक आख़िर वो बोले इश्क़ में मिट्टी तुम्हारी ख़्वार तो होगी