कहाँ वो रुक के कोई बात कर के जाता है हमेशा निस्फ़ मुलाक़ात कर के जाता है जवाब देने की मोहलत न मिल सकी हम को वो पल में लाख सवालात कर के जाता है गिरा के क़अर-ए-मिज़िल्लत में लाख ख़ुश हो मगर बुलंद वो मिरे दर्जात कर के जाता है सुने बग़ैर ही अहवाल-ए-वाक़ई हम से हमें सुपुर्द-ए-हवालात कर के जाता है