माल-ओ-मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार बिक गए अहद-ए-हवस में सब दर-ओ-दीवार बिक गए क़स्र-ए-शही में जुब्बा-ओ-दस्तार बिक गए नीलाम घर में क़ाफ़िला-सालार बिक गए जिंस-ए-वफ़ा के चाव में आए थे सुब्ह-दम बोली लगी तो ख़ुद भी ख़रीदार बिक गए शब भर रही फ़ज़ा में वफ़ा-दारियों की गूँज सूरज चढ़ा तो सारे वफ़ादार बिक गए वो ज़ोर था गिरानी-ए-जिंस-ए-हुनर का आज मैं ख़ुद भी बिक गया मिरे अफ़्कार बिक गए होश-ओ-हवास क़ल्ब-ओ-नज़र सज्दा-ओ-क़याम ऐ इश्क़ तेरे सारे ही ग़म-ख़्वार बिक गए