कहाँ दरिया की तुग़्यानी से निकला तअल्लुक़ रेत का पानी से निकला किसी की याद का काँटा था दिल में बहुत मुश्किल था आसानी से निकला गरेबाँ चाक आवारा परेशाँ जुनूँ सहरा की वीरानी से निकला वो जिस का मुंतज़िर था संग-ए-दर भी वो सज्दा मेरी पेशानी से निकला चमकते चाँद का रिश्ता भी यारो रुख़-ए-जानाँ की ताबानी से निकला जो मंज़र मिस्रा-ए-ऊला में गुम था वो मंज़र मिस्रा-ए-सानी से निकला इलाज-ए-दर्द-ए-दिल 'ज़ीशान' देखा जुनूँ की चाक-दामानी से निकला