कहाँ होगा किधर होगा दिल-ए-नाकाम क्या होगा ख़ुदा जाने मोहब्बत में तिरा अंजाम क्या होगा तब्अ' आज़ाद पैदा कर दिल-ए-बे-ख़ौफ़ पैदा कर जिसे डर मोहतसिब का हो वो मय-आशाम क्या होगा नया दीवाना हूँ मुझ को नई ज़ंजीर से बाँधो पुराना इंतिशार-ए-ज़ुल्फ़ मेरा दाम क्या होगा पिलाना ही अगर मक़्सूद है भर भर पिलाता जा हमारी प्यास के आगे ये ख़ाली जाम क्या होगा सफ़-ए-आख़िर में भी लबरेज़ पैमाना मिला हम को करम साक़ी का इस से और बढ़ कर आम क्या होगा बदल जाए जो सुब्ह-ए-वस्ल से शाम-ए-जुदाई तो तुम्हें नुक़सान आख़िर गर्दिश-ए-अय्याम क्या होगा तुम्हें क्यों फ़िक्र है यारो तड़पने दो तड़पने दो तड़पने का मैं आदी हूँ मुझे आराम क्या होगा 'जलाल'-ए-बे-नवा ज़ौक़-ए-सुख़न-गोई न गर बदला तो फिर इन बे-मज़ा शे'रों से तेरा नाम क्या होगा