कहाँ सर पीटने का वक़्त अब बेदाद-ए-क़ातिल पर कलेजे पर मिरा इक हाथ है इक हाथ है दिल पर असीरी को मिरी सब क़ैद ही समझें मगर मैं तो जो प्यार आता है बोसे देने लगता हूँ सलासिल पर ये नाले निकले जिस दिल से न जाने उस पे क्या गुज़री कि जिस के कान तक पहोंचे छुरी सी चल गई दिल पर नहीं अब आह साहिल देखना भी अपनी क़िस्मत में नज़र आई हैं मौजें जब नज़र डाली है साहिल पर तबस्सुम ने अभी इन रंग उड़े होंटों को चूमा है खिंची तस्वीर किस की पर्दा-हा-ए-चश्म-ए-क़ातिल पर ये हैं कैसी बलाएँ इस से हो सकता है अंदाज़ा कि चीख़ उट्ठे हैं वो भी जान जो देते थे मुश्किल पर तमाशा आख़िरी है अब नहीं मौक़ा तग़ाफ़ुल का कि रंगत लौटती फिरती है क़ातिल रू-ए-बिस्मिल पर हमारी ज़िंदगी इक नाम था तीमार-दारी का कभी उट्ठा न 'बेख़ुद' जब से रक्खा हाथ को दिल पर