क्यों ऐ ख़याल-ए-यार तुझे क्या ख़बर नहीं मैं क्यों बताऊँ दर्द किधर है किधर नहीं नश्तर का काम क्या है अब अच्छा है दर्द-ए-दिल सदक़े तिरे नहीं नहीं ऐ चारागर नहीं कहती है अहल-ए-ज़ौक़ से बेताबी-ए-ख़याल जिस में ये इज़्तिराब की ख़ू हो बशर नहीं दीवानगान-ए-इश्क़ पे क्या जाने क्या बनी वारफ़्तगी-ए-हुस्न को अपनी ख़बर नहीं दुनिया-ए-दर्द दिल है तो दुनिया-ए-शौक़ रूह हों और भी जहाँ मुझे कुछ भी ख़बर नहीं सहरा-ए-इश्क़-ओ-हस्ती-ए-मौहूम-ओ-राज़-ए-हुस्न इन मंज़िलों में दिल सा कोई राहबर नहीं हर ज़र्रा जिस से इक दिल-ए-मुज़्तर न बन सके वो कोई और चीज़ है तेरी नज़र नहीं इस बे-दिली से कहने का 'बेख़ुद' मआल क्या अल्फ़ाज़ कुछ हैं जम्अ मआ'नी मगर नहीं