कहाँ तलाश में जाऊँ कि जुस्तुजू तू है कहीं नहीं है यहाँ और चार-सू तू है महाज़-ए-जंग पे खिलते नहीं हैं हाथ मिरे मैं क्या करूँ कि मुक़ाबिल मिरा अदू तू है बदल गया है ज़माना बदल गई दुनिया न अब वो मैं हूँ मिरी जाँ न अब वो तू तू है किसी ने उठ के यहाँ से कहीं नहीं जाना सजी है बज़्म कि मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू तू है मैं देखता हूँ किसे कुछ मुझे नहीं मालूम कोई भी सामने आ जाए हू-ब-हू तू है तमाम आलम-ए-सर-मस्त है तिरी ईजाद ये मय-कदा है तिरा साहिब-ए-सुबू तू है तिरी तलब ने रखा इंहिमाक पाकीज़ा नमाज़-ए-इश्क़ तिरे वास्ते वज़ू तू है मिरा गुनाह भी शाइस्ता-ए-तवक्कुल है कि तू ख़ुदा है मिरा और ख़ैर-ख़ू तू है ये आइने में कोई और शख़्स है 'आसिम' ग़लत ख़याल है तेरा कि रू-ब-रू तू है