बस्ती में क़त्ल-ए-आम की कोशिश न बन सका मैं क़ातिलों के ज़ेहन की साज़िश न बन सका कोई कमी न उस में थी शायद इसी लिए वो शख़्स मेरे वास्ते ख़्वाहिश न बन सका मैं रुक नहीं सका तो मिरी बेबसी थी ये बादल था उस के सहन में बारिश न बन सका जिस पर तमाम-उम्र बहुत नाज़ था मुझे मेरा वो इल्म मेरी सिफ़ारिश न बन सका क्या बात थी वो दिल में मिरे उम्र-भर रहा जो शख़्स मेरे घर की नुमाइश न बन सका