कहानी या कोई क़िस्सा नहीं है तिरे जैसा कोई चेहरा नहीं है गुहर हूँ ला'ल हूँ मैं या कि पत्थर किसी ने आज तक परखा नहीं है सलीब-ओ-दार से सब डर रहे हैं यहाँ पर सच कोई कहता नहीं है परायों से भला शिकवा गिला क्या मुझे अपनों ने ही समझा नहीं है हर-इक सू अब्र-ए-ज़ुल्मत है बरसता कहीं रहमत की अब बरखा नहीं है बुलंदी पर बहुत इतरा रहे हो कोई भी जा के वाँ ठहरा नहीं है मोहब्बत को वो क्या समझेगा 'सारिम' जो इस रह से कभी गुज़रा नहीं है