कहानी यूँ ही सी है फिर भी शानदार कहूँ मैं सोचता हूँ किसी दिन उसे बहार कहूँ वो अपना नाम हथेली पे मेरी लिख देगा ये रिश्ता जोड़ न पाऊँ तो इंतिज़ार कहूँ उस एक नाम के आगे भी कोई रिश्ता है जब आगे सोच न पाऊँ तो यादगार कहूँ किसी की आँख से टपका बहा गया मुझ को मैं इस को क़तरा ही समझूँ कि आबशार कहूँ कभी न देंगे ये चौराहे मुझ को नाम कोई तिरे क़रीब से गुज़रूँ तो संगसार कहूँ इक उस के आने से 'शाहिद' खिले खिले से हैं फूल इस एक वहम को शायद कभी मैं प्यार कहूँ