कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे