कहीं भी बा-ख़ुदा कोई नहीं है यक़ीनन आप सा कोई नहीं है वहाँ मौजूद हूँ ख़ुद सर-ब-सर मैं जहाँ तक देखता कोई नहीं है कमाल-ए-फ़िक्र का दावा है सब को अगरचे सोचता कोई नहीं है मैं कैसे हाथ तुझ को छोड़ने दूँ मिरा तेरे सिवा कोई नहीं है मैं ऐसे शहर में मारा गया हूँ जहाँ पे ख़ूँ-बहा कोई नहीं है मैं हाज़िर हूँ मुझे अपना बना लें सुना है आप का कोई नहीं है जो पूछा है कोई घर में तो 'सानी' किसी ने दी सदा कोई नहीं है