कहीं ज़ाहिर ये तेरी चाह न की मरते मरते भी हम ने आह न की तू निगह की न की ख़ुदा जाने हम तो डर से कभू निगाह न की सब के जी में ये नाला हो गुज़रा एक तेरे ही दिल में राह न की आह मर गए प ना-तवानी एक भी आह सरबराह न की वो किसू और से करेगा क्या जिन ने तुझ से 'असर' निबाह न की