कहीं जो अज़्म ज़रा हौसला निकल आए फ़सील-ए-ग़म से नया रास्ता निकल आए न पूछ मुझ से तू उस हुस्न-ए-दिलरुबा की कशिश जिधर भी देखे वहाँ आइना निकल आए किसी नवाह की भी बात हो मगर ऐ दोस्त मियान-ए-बज़्म तिरा तज़्किरा निकल आए मैं मानता हूँ नहीं तुझ सा दूसरा कोई कोई जो तेरे सिवा दूसरा निकल आए सिनाँ की नोक पे आ जाए गर मिरा सर भी फ़लक से ऊँचा मिरा मर्तबा निकल आए मैं उस ख़ुदाई में ज़िंदा हूँ इक ज़माने से हर इक गली से नया इक ख़ुदा निकल आए 'नबील' इस लिए मैं आशिक़ी से बाज़ आया जिसे भी प्यार करूँ बेवफ़ा निकल आए