कहीं रुस्वा तिरा शैदा सर-ए-महफ़िल न हो जाए परेशानी जुनून-ए-इश्क़ का हासिल न हो जाए अभी कुछ ठोकरें खानी हैं तूफ़ान-ए-हवादिस में कहीं कश्ती मिरी शर्मिंदा-ए-साहिल न हो जाए बिखरते हैं तिरे शानों पे गेसू आज बल खा कर कहीं बरहम ये मेरी काएनात-ए-दिल न हो जाए टपकती हैं ख़िराम-ए-नाज़ से रंगीनियाँ सौ सौ मुझे डर है कि ये दुनिया सिमट कर दिल न हो जाए क़रार-ए-इज़तिराब-ए-जान-ओ-दिल 'नय्यर' उसी से है परे गर्दन से मेरी ख़ंजर-ए-क़ातिल न हो जाए