कहीं तो फेंक ही देंगे ये बार साँसों का उठाए बोझ जो फिरते हैं यार साँसों का अना ग़ुरूर तकब्बुर हयात कुछ भी नहीं कि सारा खेल है प्यारे ये चार साँसों का चलो ये ज़िंदगी ज़िंदा-दिली से जीते हैं बढ़ेगा इस तरह कुछ तो वक़ार साँसों का गुलाबी होंट वो होंटों पे रख के कहती थी सदा रहेगा ये तुझ पर ख़ुमार साँसों का बड़े क़रीब से गुज़री है मौत छू के तुझे जो हो सके कोई सदक़ा उतार साँसों का हवा ये वज्द में आ कर दिए से कहने लगी कि अब तू सह नहीं पाएगा वार साँसों का हम इस को ज़िंदगी समझें तो किस तरह 'अरशद' किसी के हाथ में है इख़्तियार साँसों का