कहकशाँ को तोड़ कर सारे के सारे आ गए चाँद को मैं ने पुकारा था सितारे आ गए सर-फिरे सूरज के मरने का तमाशा देखने शाम के मंज़र भी बालों को सँवारे आ गए याद जब मैं ने किया उन को भरे मंजधार में ख़ुद-ब-ख़ुद कश्ती में चल कर ये किनारे आ गए हाँ यही सच है बिछड़ते वक़्त अपनी आँख में उन की गलियों के लिए रंगीं नज़ारे आ गए प्रेम-धन की बाँसुरी ऐसी बजाई श्याम ने नफ़रतों के देवता भी मुँह उतारे आ गए मय-कशों की बज़्म में था रंज-ओ-ग़म पर तब्सिरा मैं ने दी आवाज़ सब उल्फ़त के मारे आ गए हम्द लिखने को क़लम जब भी उठाई है 'शिखा' लफ़्ज़ सारे बा-अदब बाँहें पसारे आ गए